कैदियों के भोजन पर डांका बादस्तूर जारी है।जेल की सजा से ‘कड़ी सजा’ है घांस फुस की सब्जी दाल औऱ रोटी खाना
जिला कारागार में देवरिया
देवरिया। जेल में बंद कैदियों को सजा से बड़ी सजा मिल रही है। जब उनके सामने कच्ची और सूखी रोटियां और घांस फुस से बनी सब्जी आतीं हैं तो कैदी मन मसोस कर खाते हैं। इस पीड़ा को कहें तो किससे कहें आखिर सवाल जो पापी पेट का है। ठंड में सबसे ज्यादा सांसत बूढ़े कैदियों की है।
जनपद कारागार में देवरिया और कुशीनगर के कैदी बंद हैं। जेल की क्षमता 530 कैदियों की रखने की है, लेकिन यहां 1500 से अधिक कैदी बंद हैं। लगभग 100 महिला बंदी शामिल हैं। कुछ कैदी सत्तर की उम्र पार कर चुके हैं। इसमें कुछ सजायाफ्ता हैं। ठंड का आलम यह है कि लोग घरों से बाहर निकलना नहीं चाहते हैं। ऐसे में जेल प्रशासन कैदियों की भारी-भरकम संख्या को देखते समय से पहले भोजन बनवाना शुरू कर देता है। सुबह छह बजे के करीब भोजन बनना शुरू हो जाता है। दोपहर में 12 बजे के करीब कैदियों के सामने भोजन की थाली परोसी जाती है। आलम यह है कि इनमें कुछ रोटियां बेतरतीब जली तो कुछ इतने कच्चे जो दांत में चिपक जाते हैं इतना ही नही सुखी रोटियों के साथ बनी सब्जी और दाल खाना तो दूर कोई देखना भी पसंद नही करता। सुबह की ये रोटियां जब थाल में पहुंचती हैं तो सूख जातीं हैं। जिनसे बूढ़े इसे खा भी नहीं पाते हैं। यही हाल शाम के भोजन का भी है। सूत्रों ने बताया कि कैदियों की संख्या अधिक होने के कारण आटे को पूरी तरह से गूंथा नहीं जाता है। दाल और सब्जियों को जेल आने से पहले ही जेल प्रशासन एक तिहाई हिस्से का कालाबजारी करके बेच दिया जाता है। हाल ही में जेल से रिहा हो कर आये कुशीनगर के एक कैदी ने नाम प्रकाशित न करने के शर्त पर बताया कि जेल में मिलने वाली रोटी दाल सब्जी इतनी बुरी होती है कि लोग खाना तो दूर देखना पसंद नही करते परंतु पापी पेट की भूख मिटाने के लिए कैदी मजबूरन नमक मिर्च के साथ केवल रोटी खाते है। रिहा हो कर घर लौटे ब्यक्ति ने रोते विलखते हुए बताया कि। हद तो तब हो गई जब एक कैदी ने इसकी शिकायत वीडियो कांफ्रेंसिक के जरिये मजिस्टेट से कर दी शिकायत करने के तुरंत बाद ही जेल अधीक्षक के चहेते सजा यापता बब्लू शर्मा ने शिकायत कर्ता को वीडियो कांफ्रेंसिंग रूम से घसीटते हुए बाहर ला कर इतनी पिटाई की गई कि शिकायत कर्ता हफ़्तों तक जेल के अस्पताल मे भर्ती रहा। वे बताते हैं कि रोटी का निचला हिस्सा जला तो ऊपरी हिस्सा कच्चा ही रहता है। दाल से पानी का मेल नहीं होता है। रोटी बनने के छह घंटे के बाद वह कैदियों की थाली में आता है। जेल से बेल पर घर आए कुशीनगर का एक ब्यक्ति का कहना है कि रोटी सूखी होने के कारण उसे खा भी नहीं पाते हैं। एक दशक से जेल में बंद थे लेकिन रोटी में कोई बदलाव नहीं देखने को मिला। हाल ही में बेल पर घर लौटे अशोक उर्फ गुड्डू कुशवाहा का कहना है कि जेल का खाना गरीबों के लिए कष्टदायी है। अमीर कैदी तो सिपाहियों से मिलकर गर्म रोटियां बनवा लेते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जेल में करीब पांच कुंटल आटा प्रतिदिन लगता है। मानक यह है कि काम करने वाले कैदियाें को 3.50 ग्राम आटा और बिना काम करने वालों को 2.70 ग्राम प्रति के हिसाब से मिलना चाहिए, लेकिन चार सूखी रोटियां ही उन्हें नसीब होतीं हैं।
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