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भूतों का अस्पताल, जहां से रात को आती हैं खौफनाक आवाजें, कुशीनगर के भूतिया डिग्री कालेज का पर्दाफाश

भूतों का अस्पताल, जहां से रात को आती हैं खौफनाक आवाजें, दीवारों पर पंक्षी तक नहीं बैठते

1982 में बने इस अस्पताल के बनने के बाद होने लगी थीं डराने वाली घटनाएं।

मऊ​. भूत-प्रेत की कहानियां को बचपन से हम अक्सर हम अपने दादा दादी , या फिर नाना नानी से सुनते चले आ रहे है। पर मऊ के अस्पताल वाले भूत के बारे में दावा किया जाता है कि यह किस्सा नहीं बल्कि सच्चाई है। इसी से समझा जा सकता है कि आज भी शाम होने पर गांव में बच्चों को अस्पताल वाले भूत से डराकर चुप कराया जाता है। लोग भी कहते हैं कि वहां से ऐसी आवाजें आती हैं कि गांव के लोगों के लिये रात काटना मुश्किल हो जाता है। किसी में आज तक हिम्मत नहीं हुई कि वह अस्पताल में जाकर देखे कि कराहने की और खौफनाक आवाजें कहां से आती हैं।

कुशीनगर के पडरौना भूतिया UNPG डिग्री कालेज का हकीकत जानने के लिए क्लिक करे।👈🏻

ये है पूरी कहानी

मऊ जिले के परदहा ब्लाक अन्तर्गत रैनी गांव में में बना सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र अस्पताल खण्डहर की तरह खड़ा है। यहां का मंजर झाड़ियों और खण्डहर के चलते डरावना लगता है। दिन में भी लोग इस रास्ते से गुजरने से डरते हैं। घनी झाड़ियों के बावजूद रास्ता इतना साफ दिखता है जैसे अभी किसी ने साफ किया हो, जबकि बताते हैं कि वहां सफाई नहीं होती।

गांव वालों की माने तो अगर दिन के 12 बजे अस्पताल के पास से कोई गुजरा तो उसकी हालत खराब हो जाती है। कई बार तो लोगों को लगता है कि अस्पताल में खूब भीड है और लोगों के रोने की आवाजें आती हैं। यही नहीं खौफ इस बात से भी होता है कि पक्षी भी इस खण्डहर और इसकी दीवारों पर नहीं बैठते।
सूरज डूबते गांव के लोग उस रास्ते को सुनसान छोड़ देते हैं। अगर बहुत मजबूरी हुई तो वहां से झुण्ड बनाकर गुजरते हैं। उन्हें हर समय इस बात का डर लगा रहता है कि किसी भूत का साया न पड़ जाए। रैनी गांव के लोग ऐसे ही रहते हैं। यह भी दावा किया जाता है कि आधी रात के समय उल्लुओं के रोने की आवाजें आती हैं। आवाजों को सुनकर ऐसा लगता है जैसे किसी ने पिघला हुआ सीसा कान में डाल दिया है।
रात होती है तो गांव वाले किसी इंतजार करते हैं कि किसी तरह से यह रात कटे और सुबह हो, क्योंकि उन्हें गांव की रात डाराती है। वह रात में दहशत में रहते हैं। गांव के लोग कहते हैं कि ऐसा लगता है जैसे रात कटती ही नहीं।
यह भी दावा किया जाता है कि कभी-कभी अस्पताल कि खिडकी से रोशनी आती दिखायी पडती है। वहां से कराहने की आवाजें सुनायी पड़ती हैं। गांव के लोगों की मानें तो ये आवाजें लम्बे समय से आती हैं पर किसी में हिम्मत नहीं कि वो वहां जाकर देखे। इसकी पड़ताल करे। गांव के लोगों का कहना है कि जिस रात अस्पताल से रोने की आवाजें आती हैं उसके दूसरे दिन गांव में जैसे मरघट का सन्नाटा छाया रहता है। हर किसी को इस बात का डर लगा रहता है कि कहीं कोई घटना न हो जाए।
अस्पताल के भूत का सच
गांव के रहने वाले 75 साल के केदार बताते है कि अस्पताल ग्रामीणों को इलाज की सुविधा के लिये बना था। पर क्या पता था कि इस अस्पताल में जिंदों का नहीं मुर्दों का इलाज होगा। केदार बताते हैं कि बात पुश्तों की है। जब गांव में रहने वाले दो पट्टीदारों के बीच आपसी लड़ाई हुई तो एक की मौत इलाज के अभाव में हो गयी। पर इसके कुछ दिनों बाद गांव में उन्हें इसी स्थान पर बैठे देखे जाने की बातें कही जाने लगीं। कहा जाता है कि वह किसी से कुछ बोलते नहीं। पर बचाव-बचाव की आवाजें जरूर आतीं।
किसी की हिम्मत नहीं होती कि वहां जाए। इस घटना के कुछ दिन बाद उनका पड़ोसी भी गांव छोड़कर गया और उस परिवार का आज तक पता नहीं कहां चले गए। उसके बाद से जिनकी मौत हुयी वह कभी यहां या फिर गांव के आसपास नहीं दिखायी पड़े। पर 1982 में जब पर यह चिकित्सा उपकेन्द्र बनकर तैयार हुआ तो कुछ दिन बाद ही टूटने-फूटने की आवाजें आने लगीं। कुछ दिन तो लोगों ने नजर अंदाज किया। पर बाद में ये बढ़ता गया।
यहां तक बताया कि जब अस्पताल के डॉक्टर चले जाते तो रात में अस्पताल का दरवाजा अपने आप खुल जाता। कुछ दिनों तक ऐसा लगा कि लापरवाही में डाक्टर से खुला रह गया होगा। पर थोड़े दिनों बाद जब यह घटना सही लगने लगी तो रात के समय तेज रोने की आवाजें भी सुनायी पड़ने लगीं। अस्पताल के डाक्टर भी परेशान हो गए। इसके बाद से जबसे अस्पताल बना है बंद ही चल रहा है। अस्पताल दिखने में नया जैसा लगता है पर अंदर सारे मेडिकल उपकरण बेकार पड़े हैं। गांव के लोगों का दावा है कि इन सामानों से भूतों का इलाज होता है।
कर्मचारी गांव में तो आती है पर अस्पताल नहीं जाती
ग्राम प्रधान मुकेश राय बताते है कि यहां पर वर्तमान में तैनात मेडिकल विभाग की मेडवाइफ यहां कभी नहीं आती। प्रधान की बातें सुनने के बाद जब पड़ताल की गयी तो अस्पताल की बिल्डिंग के आसपास तक यहां तक कि दरवाजे के पास भी लोगों के मलमूत्र फैले हुए थे। वहां जाना भी कठिन था गंदगी के चलते। उपकेन्द्र पर तैनात मेडवाइफ गांव में तो आती है पर अस्पताल नहीं जाती क्योंकि लोग कहते हैं कि वहां भूत रहता है।

भूतों का अस्पताल, जहां से रात को आती हैं खौफनाक आवाजें, कुशीनगर के भूतिया डिग्री कालेज का पर्दाफाश

भूतों का अस्पताल, जहां से रात को आती हैं खौफनाक आवाजें, दीवारों पर पंक्षी तक नहीं बैठते

1982 में बने इस अस्पताल के बनने के बाद होने लगी थीं डराने वाली घटनाएं।

मऊ​. भूत-प्रेत की कहानियां को बचपन से हम अक्सर हम अपने दादा दादी , या फिर नाना नानी से सुनते चले आ रहे है। पर मऊ के अस्पताल वाले भूत के बारे में दावा किया जाता है कि यह किस्सा नहीं बल्कि सच्चाई है। इसी से समझा जा सकता है कि आज भी शाम होने पर गांव में बच्चों को अस्पताल वाले भूत से डराकर चुप कराया जाता है। लोग भी कहते हैं कि वहां से ऐसी आवाजें आती हैं कि गांव के लोगों के लिये रात काटना मुश्किल हो जाता है। किसी में आज तक हिम्मत नहीं हुई कि वह अस्पताल में जाकर देखे कि कराहने की और खौफनाक आवाजें कहां से आती हैं।

कुशीनगर के पडरौना भूतिया UNPG डिग्री कालेज का हकीकत जानने के लिए क्लिक करे।👈🏻

ये है पूरी कहानी

मऊ जिले के परदहा ब्लाक अन्तर्गत रैनी गांव में में बना सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र अस्पताल खण्डहर की तरह खड़ा है। यहां का मंजर झाड़ियों और खण्डहर के चलते डरावना लगता है। दिन में भी लोग इस रास्ते से गुजरने से डरते हैं। घनी झाड़ियों के बावजूद रास्ता इतना साफ दिखता है जैसे अभी किसी ने साफ किया हो, जबकि बताते हैं कि वहां सफाई नहीं होती।

गांव वालों की माने तो अगर दिन के 12 बजे अस्पताल के पास से कोई गुजरा तो उसकी हालत खराब हो जाती है। कई बार तो लोगों को लगता है कि अस्पताल में खूब भीड है और लोगों के रोने की आवाजें आती हैं। यही नहीं खौफ इस बात से भी होता है कि पक्षी भी इस खण्डहर और इसकी दीवारों पर नहीं बैठते।
सूरज डूबते गांव के लोग उस रास्ते को सुनसान छोड़ देते हैं। अगर बहुत मजबूरी हुई तो वहां से झुण्ड बनाकर गुजरते हैं। उन्हें हर समय इस बात का डर लगा रहता है कि किसी भूत का साया न पड़ जाए। रैनी गांव के लोग ऐसे ही रहते हैं। यह भी दावा किया जाता है कि आधी रात के समय उल्लुओं के रोने की आवाजें आती हैं। आवाजों को सुनकर ऐसा लगता है जैसे किसी ने पिघला हुआ सीसा कान में डाल दिया है।
रात होती है तो गांव वाले किसी इंतजार करते हैं कि किसी तरह से यह रात कटे और सुबह हो, क्योंकि उन्हें गांव की रात डाराती है। वह रात में दहशत में रहते हैं। गांव के लोग कहते हैं कि ऐसा लगता है जैसे रात कटती ही नहीं।
यह भी दावा किया जाता है कि कभी-कभी अस्पताल कि खिडकी से रोशनी आती दिखायी पडती है। वहां से कराहने की आवाजें सुनायी पड़ती हैं। गांव के लोगों की मानें तो ये आवाजें लम्बे समय से आती हैं पर किसी में हिम्मत नहीं कि वो वहां जाकर देखे। इसकी पड़ताल करे। गांव के लोगों का कहना है कि जिस रात अस्पताल से रोने की आवाजें आती हैं उसके दूसरे दिन गांव में जैसे मरघट का सन्नाटा छाया रहता है। हर किसी को इस बात का डर लगा रहता है कि कहीं कोई घटना न हो जाए।
अस्पताल के भूत का सच
गांव के रहने वाले 75 साल के केदार बताते है कि अस्पताल ग्रामीणों को इलाज की सुविधा के लिये बना था। पर क्या पता था कि इस अस्पताल में जिंदों का नहीं मुर्दों का इलाज होगा। केदार बताते हैं कि बात पुश्तों की है। जब गांव में रहने वाले दो पट्टीदारों के बीच आपसी लड़ाई हुई तो एक की मौत इलाज के अभाव में हो गयी। पर इसके कुछ दिनों बाद गांव में उन्हें इसी स्थान पर बैठे देखे जाने की बातें कही जाने लगीं। कहा जाता है कि वह किसी से कुछ बोलते नहीं। पर बचाव-बचाव की आवाजें जरूर आतीं।
किसी की हिम्मत नहीं होती कि वहां जाए। इस घटना के कुछ दिन बाद उनका पड़ोसी भी गांव छोड़कर गया और उस परिवार का आज तक पता नहीं कहां चले गए। उसके बाद से जिनकी मौत हुयी वह कभी यहां या फिर गांव के आसपास नहीं दिखायी पड़े। पर 1982 में जब पर यह चिकित्सा उपकेन्द्र बनकर तैयार हुआ तो कुछ दिन बाद ही टूटने-फूटने की आवाजें आने लगीं। कुछ दिन तो लोगों ने नजर अंदाज किया। पर बाद में ये बढ़ता गया।
यहां तक बताया कि जब अस्पताल के डॉक्टर चले जाते तो रात में अस्पताल का दरवाजा अपने आप खुल जाता। कुछ दिनों तक ऐसा लगा कि लापरवाही में डाक्टर से खुला रह गया होगा। पर थोड़े दिनों बाद जब यह घटना सही लगने लगी तो रात के समय तेज रोने की आवाजें भी सुनायी पड़ने लगीं। अस्पताल के डाक्टर भी परेशान हो गए। इसके बाद से जबसे अस्पताल बना है बंद ही चल रहा है। अस्पताल दिखने में नया जैसा लगता है पर अंदर सारे मेडिकल उपकरण बेकार पड़े हैं। गांव के लोगों का दावा है कि इन सामानों से भूतों का इलाज होता है।
कर्मचारी गांव में तो आती है पर अस्पताल नहीं जाती
ग्राम प्रधान मुकेश राय बताते है कि यहां पर वर्तमान में तैनात मेडिकल विभाग की मेडवाइफ यहां कभी नहीं आती। प्रधान की बातें सुनने के बाद जब पड़ताल की गयी तो अस्पताल की बिल्डिंग के आसपास तक यहां तक कि दरवाजे के पास भी लोगों के मलमूत्र फैले हुए थे। वहां जाना भी कठिन था गंदगी के चलते। उपकेन्द्र पर तैनात मेडवाइफ गांव में तो आती है पर अस्पताल नहीं जाती क्योंकि लोग कहते हैं कि वहां भूत रहता है।

पड़ोसी ने मारपीट कर बाप बेटी को किया लहुलुहान नही हुई कोई कार्यवाही।

पड़ोसी ने मारपीट कर बाप बेटी को किया लहुलुहान नही हुई कोई कार्यवाही। 
रिपोर्टर कैमरा पर्सन मनोज कुमार के साथ संवाददाता मुमताज हाशमी सी न्यूज़ भारत कुशीनगर


 कुशीनगर जनपद के सीओ सर्किल क्षेत्र तमकुहीराज के हाईटेक थाना विशुनपुरा क्षेत्र के  ग्राम सभा बांसगाँव टोला कोईलहवा का एक सनसनी खेज मामला प्रकाश में आया है जिसमें अपने ही पाटीदार को दबंगई से जमीन हड़पने के संबंध में मारपीट कर लहू लोहान कर दिया एक बृध्द सहित कई महिलाओं को पिट कर लहुलुहान कर दिया गया  थाने पर प्रार्थना पत्र देने के बाद हफ्ता बीत जाने के बाद भी अभी तक मौके पर नहीं पहुंची विशुनपुरा थाने की पुलिस। जब हमारी मीडिया की टीम मौके पर पहुंची पीड़िता की बात जाने के लिए तो पीड़िता मजदूर तबके के मजदूरी करने वाला दौलत अंसारी नामक व्यक्ति अपनी आपबीती रो-रो कर बताने लगा वही विपक्षी का कहना है कि जमीन का विवाद  नहीं है हमारा घर बन चुका है ।जब कि पीड़ित व्यक्ति का कहना है कि बिपक्षियो द्वारा मुझे जान - माल की धमकी भी दी जा रही है लेकिन अभी तक उन पर कोई कार्यवाही नही हुई है। बताते चले कि दौलत अंसारी की बेटी 5 अप्रैल की शादी है दबंगों ने उसको भी मारपीट कर लहूलुहान कर दिया है । मुहम्मद दौलत का आरोप है कि मेरे पडो़स में ही एक व्यक्ति से जमीन का बिवाद चल रहा है जिसको लेकर उक्त लोग मुझे गाली गुफ्ता दे रहे थे जब मेरे द्वारा विरोध करने पर हमलावर होकर लाठी डंडे से मारने लगे मुझे पिटता देख मेरी लड़की और पत्नी मुझे बचाने आई तो उन्हें भी बुरी तरह से मार पिट कर लहुलुहान कर दिया गया। उक्त प्रकरण में थाना विशुनपुरा में प्रार्थना पत्र देने के बाद भी अभी तक कोई कार्यवाही नही हुई है ना ही मौके पर कोई जांच पड़ताल हुई है।

पड़ोसी ने मारपीट कर बाप बेटी को किया लहुलुहान नही हुई कोई कार्यवाही।

पड़ोसी ने मारपीट कर बाप बेटी को किया लहुलुहान नही हुई कोई कार्यवाही। 
रिपोर्टर कैमरा पर्सन मनोज कुमार के साथ संवाददाता मुमताज हाशमी सी न्यूज़ भारत कुशीनगर


 कुशीनगर जनपद के सीओ सर्किल क्षेत्र तमकुहीराज के हाईटेक थाना विशुनपुरा क्षेत्र के  ग्राम सभा बांसगाँव टोला कोईलहवा का एक सनसनी खेज मामला प्रकाश में आया है जिसमें अपने ही पाटीदार को दबंगई से जमीन हड़पने के संबंध में मारपीट कर लहू लोहान कर दिया एक बृध्द सहित कई महिलाओं को पिट कर लहुलुहान कर दिया गया  थाने पर प्रार्थना पत्र देने के बाद हफ्ता बीत जाने के बाद भी अभी तक मौके पर नहीं पहुंची विशुनपुरा थाने की पुलिस। जब हमारी मीडिया की टीम मौके पर पहुंची पीड़िता की बात जाने के लिए तो पीड़िता मजदूर तबके के मजदूरी करने वाला दौलत अंसारी नामक व्यक्ति अपनी आपबीती रो-रो कर बताने लगा वही विपक्षी का कहना है कि जमीन का विवाद  नहीं है हमारा घर बन चुका है ।जब कि पीड़ित व्यक्ति का कहना है कि बिपक्षियो द्वारा मुझे जान - माल की धमकी भी दी जा रही है लेकिन अभी तक उन पर कोई कार्यवाही नही हुई है। बताते चले कि दौलत अंसारी की बेटी 5 अप्रैल की शादी है दबंगों ने उसको भी मारपीट कर लहूलुहान कर दिया है । मुहम्मद दौलत का आरोप है कि मेरे पडो़स में ही एक व्यक्ति से जमीन का बिवाद चल रहा है जिसको लेकर उक्त लोग मुझे गाली गुफ्ता दे रहे थे जब मेरे द्वारा विरोध करने पर हमलावर होकर लाठी डंडे से मारने लगे मुझे पिटता देख मेरी लड़की और पत्नी मुझे बचाने आई तो उन्हें भी बुरी तरह से मार पिट कर लहुलुहान कर दिया गया। उक्त प्रकरण में थाना विशुनपुरा में प्रार्थना पत्र देने के बाद भी अभी तक कोई कार्यवाही नही हुई है ना ही मौके पर कोई जांच पड़ताल हुई है।

UP Panchayat Election 2021 : उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट का फैसला, 2015 के आधार पर होगा आरक्षण

UP Panchayat Election 2021 : उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट का फैसला, 2015 के आधार पर होगा आरक्षण

यूपी पंचायत चुनाव में सीटों पर आरक्षण व्यवस्था को लेकर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना फैसला सुना दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि वर्ष 2015 को आधार मानते हुए सीटों पर आरक्षण लागू किया जाए। इसके पूर्व राज्य सरकार ने कहा कि वह वर्ष 2015 को आधार मानकर आरक्षण व्यवस्था लागू करने के लिए तैयार है। इस पर न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी व न्यायमूर्ति मनीष माथुर की खंडपीठ ने 25 मई तक यूपी पंचायत चुनाव 👈🏻 संपन्न कराने के आदेश दिया है। 

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आपको बता दें कि हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका देकर 11 फरवरी 2021 के शासनादेश को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया है कि पंचायत चुनाव में आरक्षण लागू किए जाने सम्बंधी नियमावली के नियम 4 के तहत जिला पंचायत, सेत्र पंचायत व ग्राम पंचायत की सीटों पर आरक्षण लागू किया जाता है। कहा गया कि आरक्षण लागू किए जाने के सम्बंध में वर्ष 1995 को मूल वर्ष मानते हुए 1995, 2000, 2005 व 2010 के चुनाव सम्पन्न कराए गए।

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याचिका में आगे कहा गया कि 16 सितम्बर 2015 को एक शासनादेश जारी करते हुए वर्ष 1995 के बजाय वर्ष 2015 को मूल वर्ष मानते हुए आरक्षण लागू किए जाने को कहा गया। उक्त शासनादेश में ही कहा गया कि वर्ष 2001 व 2011 के जनगणना के अनुसार अब बड़ी मात्रा में डेमोग्राफिक बदलाव हो चुका है। लिहाजा वर्ष 1995 को मूल वर्ष मानकर आरक्षण लागू किया जाना उचित नहीं होगा। कहा गया कि 16 सितम्बर 2015 के उक्त शासनादेश को नजरंदाज करते हुए, 11 फरवरी 2021 का शासनादेश लागू कर दिया गया। जिसमें वर्ष 1995 को ही मूल वर्ष माना गया है। यह भी कहा गया कि वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव भी 16 सितम्बर 2015 के शासनादेश के ही अनुसार सम्पन्न हुए थे।

UP Panchayat Election 2021 : उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट का फैसला, 2015 के आधार पर होगा आरक्षण

UP Panchayat Election 2021 : उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट का फैसला, 2015 के आधार पर होगा आरक्षण

यूपी पंचायत चुनाव में सीटों पर आरक्षण व्यवस्था को लेकर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना फैसला सुना दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि वर्ष 2015 को आधार मानते हुए सीटों पर आरक्षण लागू किया जाए। इसके पूर्व राज्य सरकार ने कहा कि वह वर्ष 2015 को आधार मानकर आरक्षण व्यवस्था लागू करने के लिए तैयार है। इस पर न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी व न्यायमूर्ति मनीष माथुर की खंडपीठ ने 25 मई तक यूपी पंचायत चुनाव 👈🏻 संपन्न कराने के आदेश दिया है। 

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आपको बता दें कि हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका देकर 11 फरवरी 2021 के शासनादेश को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया है कि पंचायत चुनाव में आरक्षण लागू किए जाने सम्बंधी नियमावली के नियम 4 के तहत जिला पंचायत, सेत्र पंचायत व ग्राम पंचायत की सीटों पर आरक्षण लागू किया जाता है। कहा गया कि आरक्षण लागू किए जाने के सम्बंध में वर्ष 1995 को मूल वर्ष मानते हुए 1995, 2000, 2005 व 2010 के चुनाव सम्पन्न कराए गए।

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याचिका में आगे कहा गया कि 16 सितम्बर 2015 को एक शासनादेश जारी करते हुए वर्ष 1995 के बजाय वर्ष 2015 को मूल वर्ष मानते हुए आरक्षण लागू किए जाने को कहा गया। उक्त शासनादेश में ही कहा गया कि वर्ष 2001 व 2011 के जनगणना के अनुसार अब बड़ी मात्रा में डेमोग्राफिक बदलाव हो चुका है। लिहाजा वर्ष 1995 को मूल वर्ष मानकर आरक्षण लागू किया जाना उचित नहीं होगा। कहा गया कि 16 सितम्बर 2015 के उक्त शासनादेश को नजरंदाज करते हुए, 11 फरवरी 2021 का शासनादेश लागू कर दिया गया। जिसमें वर्ष 1995 को ही मूल वर्ष माना गया है। यह भी कहा गया कि वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव भी 16 सितम्बर 2015 के शासनादेश के ही अनुसार सम्पन्न हुए थे।

2.5 लाख से ज्यादा समाचार पत्रों के टाइटल निरस्त 804 अखबारों को सूची से बाहर निकालने की खबर अफवाह है

आवश्यक सूचना ये खबर 2017 में किसी ब्लॉग से पोस्ट की गई थी इसको किसी के अब सेयर करके वायरल की जा रही है ये मामला गलत और निराधार है अफवाहों पर ध्यान न दें। वो खबर इस प्रकार है। पढ़े

पुराने विज्ञापनों की जांच शुरू, अपात्र अखबारों से वसूली के निर्देश 
नई दिल्ली। मोदी सरकार ने पिछले एक साल की जांच के बाद ढाई लाख से अधिक अखबारों का टाईटल निरस्त कर दिया है साथ ही सैंकड़ों अखबारों को डीएवीपी की सूची से बाहर कर दिया है। इसके साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों की एक टीम को पुरानी सारी गड़बड़ी की जांच के निर्देश दिए हैं। इसमें अपात्र अखबारों और मैंगजीन को सरकारी विज्ञापन देने की शिकायतों की जांच भी शामिल है। इसमें गड़बड़ी पाए जाने पर रिकवरी और कानूनी कार्रवाई के निर्देश भी हैं। इसके चलते मीडियाजगत में हड़कंप है।
मोदी सरकार द्वारा सख्ती के इशारे के बाद आरएनआई यानि समाचार पत्रों के पंजीयक का कार्यालय और डीएवीपी यानि विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय काफी सख्त हो चुके हैं. समाचार पत्र के संचालन में जरा भी नियमों को नजरअंदाज किया गया तो आरएनआई समाचार पत्र के टाईटल पर रोक लगाने को तत्पर हो जा रहा है. उधर, डीएवीपी विज्ञापन देने पर प्रतिबंध लगा दे रहा है. देश के इतिहास में पहली बार हुआ है जब लगभग 269,556 समाचार पत्रों के टाइटल निरस्त कर दिए गए और 804 अखबारों को डीएवीपी ने अपनी विज्ञापन सूची से बाहर निकाल दिया है. इस कदम से लघु और माध्यम समाचार पत्रों के संचालकों में हड़कम्प मच गया है.
पिछले काफी समय से मोदी सरकार ने समाचार पत्रों की धांधलियों को रोकने के लिए सख्ती की है. आरएनआई ने समाचार पत्रों के टाइटल की समीक्षा शुरू कर दिया है. समीक्षा में समाचार पत्रों की विसंगतियां सामने आने पर प्रथम चरण में आरएनआई ने प्रिवेंशन ऑफ प्रापर यूज एक्ट 1950 के तहत देश के 269,556 समाचार पत्रों के टाइटल निरस्त कर दिए. इसमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के अखबार-मैग्जीन (संख्या 59703) और फिर उत्तर प्रदेश के अखबार-मैग्जीन (संख्या 36822) हैं. 

इन दो के अलावा बाकी कहां कितने टाइटिल निरस्त हुए हैं, देखें लिस्ट.... बिहार 4796, उत्तराखंड 1860, गुजरात 11970, हरियाणा 5613, हिमाचल प्रदेश 1055, छत्तीसगढ़ 2249, झारखंड 478, कर्नाटक 23931, केरल 15754, गोआ 655, मध्य प्रदेश 21371, मणिपुर 790, मेघालय 173, मिजोरम 872, नागालैंड 49, उड़ीसा 7649, पंजाब 7457, चंडीगढ़ 1560, राजस्थान 12591, सिक्किम 108, तमिलनाडु 16001, त्रिपुरा 230, पश्चिम बंगाल 16579, अरुणाचल प्रदेश 52, असम 1854, लक्षद्वीप 6, दिल्ली 3170 और पुडुचेरी 523

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शहरो की तर्ज पर प्रधान ने गांव को बना दिये स्मार्ट गांव तथा स्मार्ट पार्क-: काम बोलता है। जयप्रकाश यादव

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