पत्रकारों की जिंदगी दिहाड़ी मजदूर से भी बद से बदतर हालात
वेतन बोर्ड अधिनियम 1955 वेतन बोर्ड
1950 और 60 के दशक में, जब संगठित श्रम क्षेत्रक पर्याप्त संघीकरण या पर्याप्त सौदेबाजी क्षमता से रहित ट्रेड यूनियनों के बिना अपने विकास के उदयीमान चरण में था, सरकार ने वेतन निर्धारण के क्षेत्र में उठने वाली समस्याओं के मूल्यांकन के लिए अनेक वेतन बोर्डो का गठन किया। वेतन बोर्ड त्रिकाणीय प्रकृति के होते हैं जिनमें श्रमिकों, कर्मचारियों और स्वतंत्र सदस्यों की भागीदारी होती है और अनुशंसाओं को अंतिम रुप दिया जाता है। समय के साथ–साथ, यह महसूस किया गया कि विभिन्न क्षेत्रकों में कर्मचारियों के संदर्भ में सरकार को वेतन दर निर्धारित करने की जरुरत नहीं है तथा यह जिम्मेदारी उद्योग पर भी सौंपी जा सकती है। हालांकि, पत्रकारों, गैर-पत्रकार समाचारपत्रों तथा न्यूज एजेंसी के कर्मचारियों के लिए वेतनों का भुगतान अभी भी वेतन बोर्डों द्वारा की किया जाता है क्योंकि वेतन बोर्डों द्वारा दिया गया पारितोषिक असंविधिक प्रकृति का होता है, इन वेतन बोर्डों द्वारा की गई अनुशंसाएं कानून के अंतर्गत प्रवर्तनीय नहीं होतीं।
असंविधिक वेतन बोर्ड की अहमियत समय के साथ–साथ गिरती गई और 1966 के बाद गन्ना उद्योग के अलावा किसी भी असंविधिक बोर्ड का गठन नहीं हुआ। इस प्रकार के अंतिम बोर्ड का गठन 1985 मे हुआ था। ट्रेड यूनियन, जो इन उद्योगों में मजबूती के साथ विकसित हुए, प्रबंधन के साथ खुद से वेतन समझौता करने के लिए सक्षम हैं। इस प्रचलन के भविष्य में भी लगातार जारी रहने की संभावना है।
श्रमजीवी और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) विविध प्रावधान अधिनियम, 1955 (1955 का 45) (संक्षेप में अधिनियम) श्रमजीवी पत्रकारों और गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचारियों की सेवा की शर्तों के लिए विनियमन प्रदान करता है। इस अधिनियम की धारा 9 और 13सी, अन्य विषयों में क्रमश: श्रमजीवी पत्रकार और गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचारियों के संबंध में वेतन दरों के निर्धारण अथवा सुधार के लिए दो वेतन बोर्डों के गठन के लिए कानून का प्रावधान मुहैया करता है। केन्द्र सरकार आवश्यकता पड़ने पर, वेतन बोर्डों का गठन करेगी जिसमें समाचारपत्र प्रतिष्ठानों से संबंधित तीन व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व होगा;
तीन व्यक्ति समाचार पत्र प्रतिष्ठानों के संबंध में नियोक्ताओं का प्रतिनिधित्व करेंगे;
तीन व्यक्ति इस अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत वेतन बोर्ड के लिए श्रमजीवी पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करेंगे और तीन व्यक्ति धारा 13सी के इंतर्गत गैर-पत्रकार समाचार पत्र कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करेंगे।
चार स्वतंत्र व्यक्ति, उनमें से एक वह व्यक्ति होंगे जो उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं अथवा रह चुके हैं तथा उनकी नियुक्ति अध्यक्ष के रुप में सरकार द्वारा की जाएगी।
1955 से सरकार ने श्रमजीवी पत्रकार और गैर-पत्रकार समाचारपत्र कर्मचारियों के लिए 6 वेतन बोर्डों का गठन कर चुकी है। निम्नलिखित तालिका में वेतन बोर्ड के गठन के विवरण एवं अन्य संबंधित विवरण दिए गए हैं।
भारत सरकार ने 2007 में श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) विविध प्रावधान अधिनियम, 1955 के प्रावधान के अनुसार छठे वेतन बोर्ड के रुप में न्यायाधीश कुरुप की अध्यक्षता में दो वेतन बोर्डों (मजीठिया) का गठन किया, एक श्रमजीवी पत्रकार तथा दूसरा गैर-पत्रकार समाचार पत्र कर्मचारियों के लिए। अध्यक्ष, न्यायाधीश के. नारायण कुरुप ने 31 जुलाई 2008 को त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद, न्यायधीश जी. आर. मजीठिया ने 4 मार्च 2009 की अध्यक्ष के रुप में पदभार संभाला। माजीतिया वेतन बोर्ड ने भारत सरकार को 31 दिसम्बर 2010 को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी ।
सरकार ने मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाओं को स्वीकार किया और इसी के अनुसार इसे प्रकाशित किया गया, देखिए एस.ओ. संख्या 2532 (ई) दिनांक 11/11/2011. इन अनुशंसाओं को मंत्रालय की वेबसाइट पर तथा पब्लिक डोमेन में अपलोड कर दिया गया। यह अधिसूचना एबीपी प्राइवेट लिमिटेड और एएन आर बनाम भारत संघ तथा अन्य के मामले में 2011 की रिट याचिका (सिविल) संख्या 246 के परिणाम के अधीन है। इसके अतिरिक्त, वेतन बोर्ड की कानूनी वैधता तथा माजीतिया वेतन बोर्ड की अनुशसाओं को क्रियान्वित न करने के संबंध में विभिन्न समाचार पत्र कर्मचारियों द्वारा सितम्बर 2012 तक 11 अन्य रिट याचिकाएं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गईं। मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाओं के क्रियान्वयन पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय का कोई स्थगन आदेश नहीं है। सभी रिट याचिकाओं की सुनवाई 05.02.2013 को शुरू हुई और उक्त मामले समय-समय पर सुनवाई के लिए 09 जनवरी, 2014 तक जब तक कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने फैसले को सुरक्षित रखा है, प्रस्तुत होते रहे। 2011 के डब्ल्यूपी नंबर 246 और अन्य इंगित कोर्ट केसों में माननीय उच्चतम न्यायालय ने 07.02.2014 को इस निर्देश के साथ अपना फैसला सुनाया है कि:
“सभी रिट याचिकाएं खारिज कर दी गई है और मजदूरी यथा परिशोधित/निर्धारित रूप से 11.11.2011 से जब भारत सरकार ने मजिठिया वेतनबोर्ड की सिफारिशों को अधिसूचित किया है, देय होगा। सभी बकाये राशि को मार्च, 2014 तक सभी पात्र व्यक्तियों में चार समान किस्तों में 07.02.2014 से एक वर्ष के भीतर भुगतान किया जाएगा और अप्रैल, 2014 के बाद से परिशोधित मजदूरी का भुगतान जारी रखा जाएगा।”
माननीय उच्चतम न्यायालय के उपरोक्त फैसले से सभी राज्य सरकारों/केन्द्र शासित प्रदेशों को मार्च, 2014 में सूचित कर दिया गया है।
अनुशंसाओं के क्रियांवयन की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकार/केन्द्र शासित प्रदेश की है। इसी अनुसार, अधिसूचना की एक प्रति (हिन्दी एवं अंग्रेजी दोनों में) सभी राज्य सरकारों/केन्द्र शासित प्रदेशों को इस मंत्रालय की चिट्ठी दिनांकित 24/11/2011 को भेज दी गई थी। अधिसूचना के क्रियान्वयन की निगरानी हेतु प्रधान श्रम एवं रोजगार सलाहकार की अध्यक्षता में एक केंद्रीय स्तर की अनुवीक्षण समिति का गठन किया गया है जिसमें संयुक्त सचिव, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय एवं प्रधान श्रम आयुक्त (केंद्रीय) सदस्य के तौर पर हैं तथा उप महानिदेशक सदस्य सचिव हैं। त्रिपक्षीय अनुवीक्षण समिति के गठन से संबंधित श्रम और रोजगार मंत्रालय का दिनांक 24.04.2012 का आदेश राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के सभी श्रम सचिवों को पृष्ठांकित करते हुए समिति के सभी सदस्यों को भेज दिया गया है।
केन्द्रीय स्तर की अनुवीक्षण समिति की प्रथम बैठक प्रधान श्रम एवं रोजगार सलाहकार की अध्यक्षता में 24/09/2012 को हैदराबार में आयोजित की गई थी। तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश राज्यों से आए अधिकारी बैठक में उपस्थित हुए। 5 पूर्वी राज्यों नामत: बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड और उड़ीसा के संबंध में वेतन बोर्ड निर्णयों के कार्यान्वयन की संविधियों की समीक्षा करने के लिए भुवनेश्वर में 13/09/2013 को केंद्रीय स्तर की अनुवीक्षण समिति की दूसरी बैठक आयोजित की गई थी।पश्चिमी क्षेत्र के सात राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों अर्थात् राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गोवा, दादर एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव के लिए 21.04.2014 को इसकी तीसरी बैठक मुंबई (महाराष्ट्र) में आयोजित हुई। उतरी क्षेत्र के आठ राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों अर्थात् जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़ एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के संबंध में सीएलएमसी की चौथी बैठक दिनांक 10.06.2014 को दिल्ली (श्रम शक्ति भवन) में आयोजित की गई।
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